देशभर में मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाकर किसी का भी घर गिरा देने की सरकारी सनक पर देश की सर्वोच्य अदालत सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. अदालत ने साफ कह दिया कि राज्य सरकारों के पास किसी को दोषी या निर्दोष साबित करने का अधिकार नहीं है. सरकार जज बनकर किसी को भी सजा नहीं दे सकती, ये पूरी तरह से गलत है.
अदालत ने कहा कि घर केवल एक संपत्ति नहीं बल्कि सुरक्षा के लिए परिवार की सामूहिक उम्मीद का प्रतीक होता है. कोर्ट ने कहा कि अगर बिना उचित नियम का पालन किए मनमाने ढंग से किसी का घर गिराया गया तो संबंधित अधिकारी को अपनी जेब से उसकी लागत चुकानी होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कार्यपालिका सिवर्फ आरोपों के आधार पर किसी की संपत्ति गिराती है तो ये कानून के शासन के सिद्धांत के खिलाफ है और ऐसा करने की अनुमति नहीं है. बुलडोजर एक्शन जैसे कृत्यों के लिए हमारे संविधान में कोई जगह नहीं है.
अदालत ने साफ किया कि किसी अपराध के लिए दोषी का घर नहीं गिराया जा सकता. ये संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत राइट टू शेल्टर के खिलाफ है. ऐसी कार्रवाई पूरे परिवार के लिए सजा है. घर केवल एक संपत्ति नहीं बल्कि सामाजिक आर्थिक आकांक्षाओं का पहलू है. इसके पीछे सालों का संघर्ष होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी संपत्ति को अचानक गिराने के लिए चिन्हित किया जाता है जबकि उसी तरह की दूसरी संपित्त बची रहती है तो इसका मकसद अवैध संपत्ति को गिराना नहीं बल्कि उस व्यक्ति को कानून की अदालत के सामने दंडित करने जैसा है.
अदालत ने कहा कि केवल वहीं संरचनाएं ध्वस्त की जाएंगी जो अनाधिकृत पाई जाएंगी और जिनका निपटान नहीं किया जा सकता. संचरना को गिराते समय विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाए और अधिकारियों की मौजूदगी में वीडियो रिकॉर्डिंग की जाए, ये रिपोर्ट पोर्टल पर पब्लिश की जाए.
अगर घर गिराने का आदेश पारित किया जाता है तो उसके खिलाफ अपील करने के लिए समय दिया जाना चाहिए. जो मकान गिराना है उसके मालिक को रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजा जाए, संरचना के बाहर नोटिस को चिपकाया जाए. नोटिस देने के 15 दिन के अंदर तोड़फोड़ नहीं की जा सकेगी.
कोर्ट के फैसले से ये तो साफ हो गया कि अब तक सरकारें बुलडोजर एक्शन के नाम पर जो मनमानी करती आ रही थी वो पूरी तरह से असंवैधानिक तरीका था. अब ऐसी सनक पर लगाम लग जाएंगी.