मुर्ग़े की बांग को सुबह की अलार्म माना जाता है। आज भी कुछ गिने चुने गांवों में लोग मुर्ग़े की बांग सुनकर अपनी दिनचर्या शुरू कर देते हैं। कभी आपने सोचा है आख़िर मुर्ग़ों को कैसे पता लग जाता है कि सुबह होने वाली है। कैसे वह सटीक समय पर ही बांग देना शुरू कर देते हैं। उन्हें कैसे अंदाज़ा लगता है कि अब सूर्य की रोशनी बिखरने का वाली और उनके बांग देने का यही समय है। चलिए जानते हैं आख़िर ये मुर्ग़े किस घड़ी का इस्तेमाल करते हैं।

प्राकृतिक घड़ी

मुर्गों के शरीर में एक प्राकृतिक घड़ी काम करती है। जो उन्हें सूर्योदय के समय के आसपास बांग देने के लिए प्रेरित करती है। इससे वे अन्य मुर्गियों को और खुद को दिन की शुरुआत का संकेत देते हैं। मुर्गों के शरीर में मौजूद जैविक घड़ी, जिसे सिरकेडियन रिदम कहते हैं। यह घड़ी मुर्ग़ों के शरीर को 24 घंटे के चक्र में काम करने के लिए बताती है। सूर्योदय के समय प्रकाश में बदलाव के कारण यह घड़ी सक्रिय हो जाती है और मुर्गे को बांग देने का संकेत देती है।

मुर्गे की आंखें प्रकाश के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं। सूर्योदय के समय प्रकाश में होने वाले बदलाव को मुर्गे की आंखें तुरंत पकड़ लेती हैं। और इसका संकेत दिमाग़ को बांग देने के लिए भेजती हैं। इसके अलावा मुर्गे के लिए बांग देना एक सामाजिक व्यवहार भी है। जैविक घड़ी मुर्ग़े को जगाती है ऐसे में वो बांग देकर अपने समूह के अन्य सदस्यों को सूचित करते हैं कि दिन शुरू हो गया है और उन्हें जागना चाहिए।