गेहूं की नई किस्म: भारत एक कृषि प्रधान देश है आजादी के बाद दशकों तक औद्योगीकरण, शहरीकरण के बाद भी यहाँ की 60% जनता खेती करती हैं. देश कि जीडीपी में कृषि का अहम योगदान होता हैं.

देश में खरीफ़ सीजन की फसलों की कटाई चल रही है. इसी के साथ रबी का सीजन शुरु हो चुका हैं. रबी सीजन में गेहूं की खेती सबसे अधिक की जाती हैं. पिछले 2-3 सालों से गेहूं की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा मिल रहा हैं. लेकिन इस दौरान मौसम परिवर्तन के कारण गेहूं की पैदावार पर भी इसका असर देखने को मिला हैं.

जिसको देखते हुए कृषि वैज्ञानिक मौसम परिवर्तन के दौरान अच्छी पैदावार देने वाली एवं रोग प्रतिरोधी गेहूं की नवीन किस्मों को विकसित कर रहे हैं. इन्हीं वैरायटी में से हाल ही में एक नई वैरायटी कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की है जो अनुकूल परिस्थितियों में प्रति हेक्टेयर 80 से 100 क्विंटल का पैदावार देगी.

पूसा के कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने क‍िसानों के ल‍िए जारी एक एडवाइजरी में कहा है क‍ि वे मौसम को ध्यान में रखते हुए, गेंहू की बुवाई के ल‍िए तैयार खेतों में पलेवा तथा उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करें. पलेवे के बाद यदि खेत में ओट आ गई हो तो उसमें गेहूं की बुवाई कर सकते हैं.

बुवाई से पहले क्या करें

किसान भाइयों को अधिक उपज प्राप्त करने के लिए अच्छी और प्रमाणित गेहूं ही बोना चाहिए. अच्छी उपज के लिए बीज की गुणवत्ता को बनाए रखना बहुत जरूरी है. इसके लिए बीजोपचार करना चाहिए. बीज उपचार न किया जाए तो बहुत से रोगों के आक्रमण होने का खतरा बना रहता हैं.

बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थाइरम या 2.5 ग्राम मैन्कोजेब या टेबुकोनोजोल 1 ग्राम प्रत‍ि क‍िलोग्राम बीज से उपचारित करना चाहिए.

कृष‍ि वैज्ञान‍िकों के मुताब‍िक हाथों में रबर के दस्ताने पहनकर दवा के घोल को अच्छी प्रकार से बिजाई की पहली शाम को गेहूं में मिला दें. फफूंदनाशी या जीवाणुनाशी या परजीवियों का उपयोग करके उपचार कर सकते हैं. बीज उपचार करने के बाद गेहूं की फसल करनाल बंट और लूज स्मट जैसी बीमारियों से बच सकती है.

प्रमुख क‍िस्मों की खास‍ियत

  • एचडी 3385 गेंहू की किस्म को पूसा, नई दिल्ली ने व‍िकस‍ित क‍िया है. यह किस्म ज्यादा तापमान में भी अच्छी पैदावार देती है. इसकी उपज क्षमता लगभग 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. अगर समय पर इसकी बुआई की जाए तो अनुकूल परिस्थितियों में प्रति हेक्टेयर 80 से 100 क्विंटल तक की पैदावार म‍िल सकती है.
  • गेहूं की एक बेहतरीन क‍िस्म एचडी 3386 भी है. कृषि मंत्रालय की सेंट्रल सीड कमेटी द्वारा हाल ही में अप्रूव्ड यह क‍िस्म पीलेपन और पत्ती रतुआ रोगों के प्रति प्रतिरोधी है, जो मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के प्रमुख गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में पाए जाते हैं.
  • गेहूं की एक और अच्छी क‍िस्म एचडी 3086 (पूसा गौतमी) भी है. देश के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में समय पर बुवाई और सिंचित परिस्थितियों में व्यावसायिक खेती के लिए यह बेहतरीन क‍िस्म है. इसकी औसत उपज 54.6 क्व‍िंटल प्रत‍ि हेक्टेयर है. सिंचित परिस्थितियों में अगर समय पर बुवाई हो तो 71 क्व‍िंटल प्रत‍ि हेक्टेयर की उपज होगी. यह क‍िस्म पीला रतुआ और भूरा रतुआ के लिए प्रतिरोधी है.
  • एचडी 2967 की बुवाई पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (उदयपुर और कोटा डिवीजन को छोड़कर) और उत्तर प्रदेश में कर सकते हैं. इसका औसत उत्पादन 50.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और उपज क्षमता 66.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह गेहूं की अगेती किस्म है. इसमें रोग कम लगते हैं. इस किस्म के गेहूं में पीला रतुआ रोग से लड़ने की क्षमता होती है, जो गेहूं का सबसे खतरनाक रोग है.
  • भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने डीबीडब्ल्यू 370 , डीबीडब्ल्यू 371 और डीबीडब्ल्यू 372  नाम से बायो फोर्टिफाइड किस्में व‍िकस‍ित की हैं.