बटेंगे तो कटेंगे का नारा अब भाजपा के लिए ही मुसीबत बनता जा रहा है. महाराष्ट्र में विपक्षी नेताओं और भाजपा की सहयोगी पार्टियों के बाद अब बीजेपी के अपने अंदर से इस नारे के खिलाफ विरोध के सुर बुलंद होने लगे हैं.
इस नारे पर महाराष्ट्र बीजेपी दो खेमों में बटती नजर आ रही है. कुछ भाजपा नेताओं का कहना है कि इस तरह के नारे जनता पसंद नहीं करती है. भाजपा नेता पंकजा मुंडे के बाद अब कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने वाले नेता अशोक चव्हाण ने भी इस नारे को अप्रासंगिक बता दिया है.
भाजपा के राज्यसभा सांसद अशोक चव्हाण ने कहा कि बटेंगे तो कटेंगे का नारा पूरी तरह से अप्रासंगिक है और महाराष्ट्र की जनता इसे पसंद नहीं करेगी. चुनाव के समय नारे दिए जाते हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि लोग इसे पसंद करेंगे. निजी तौर पर मैं ऐसे नारे के खिलाफ हूं क्योंकि ये समाज के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं है. हमें देखना होगा कि ऐसे नारों से किसी की भावनाएं आहत ना हों.
इससे पहले भाजपा एमएलसी पंकजा मुंडे ने कहा था कि मेरा राजनीति करने का तरीका अलग है. मैं सिर्फ इसलिए ऐसे नारे का समर्थन नहीं कर सकती क्योंकि मैं उसी पार्टी से हूं. उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि हमें सिर्फ विकास की बात करनी चाहिए.
एक नेता का काम यहां रहने वाले सभी लोगों को अपना बनाना है, हमें लगता है कि महाराष्ट्र में इस तरह का मुद्दा लाने की कोई जरूरत ही नहीं है. महाराष्ट्र में बीजेपी की दोनों प्रमुख सहयोगी दल एनसीपी अजित पवार गुट और शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट ने भाजपा के इस नारे से दूरी बनाते हुए साफ कर दिया है कि ये सब महाराष्ट्र में नहीं चलेगा.
सहयोगियों के साथ ना देने से विपक्षी दलों को भाजपा को घेरने का एक और मौका मिल जाएगा. महायुति गठबंधन में सबसे पहले अजित पवार ने इस नारे का विरोध किया, इसके बाद अब सीएम एकनाथ शिंदे ने भी कह दिया कि बटेंगे तो कटेंगे का नारा महाराष्ट्र में नहीं चलेगा.
दरअस्ल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ये नारा दिया था, इस नारे के जरिए भाजपा हिंदू वोटों को एकजुट करने की जुगत में है. महाराष्ट्र में भाजपा के दोनों सहयोगी दल इस नारे को विभाजनकारी मानकर चल रहे हैं.
दोनों को ही लगता है कि इस तरह के नारों से उनका मुस्लिम वोट बैंक खिसक जाएगा. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे चाहते हैं कि बटेंगे तो कटेंगे वाले नारे पर महाराष्ट्र में राजनीति नहीं होनी चाहिए.