आधुनिकता में हम पारंपरिक तरीक़े और आपसी प्रेम खोते जा रहे हैं। पहले जहां हर त्योहार को मिलजुल कर मनाया जाता था वह अब कम होता जा रहा है। ऐसे में कभी आपने सोचा है आख़िर 100 साल पहले दिवाली कैसे मनाई जाती थी। जब ना तो इलेक्ट्रिसिटी हुआ करती थी और ना ही आज के जैसे पटाखों का शोर शराबा। चलिए जानते हैं कैसे मनाई जाती थी आज से 100 साल पहले दिवाली।
1. मिट्टी के दीपों से सजावट
उस समय लोग मिट्टी के दीपक या दीये जलाते थे और घर, आंगन, और मंदिरों में इन्हीं दीयों से रोशनी की जाती थी। तेल के दीयों का विशेष महत्व था और लोग घर के हर कोने में दीये जलाते थे। विशेष प्रकार के दीये हाथों से बनाए जाते थे और यह रिवाज हर साल के लिए जरूरी माना जाता था।
2. प्राकृतिक रंगों से रंगोली
रंगोली बनाने के लिए प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता था, जो फूलों, पत्तियों, और हल्दी से बनते थे। चावल के आटे और हल्दी का भी उपयोग किया जाता था, और रंगोली का उद्देश्य देवी लक्ष्मी का स्वागत करना होता था।
3. घरेलू मिठाइयाँ
मिठाइयों का आदान-प्रदान दिवाली का महत्वपूर्ण हिस्सा था, लेकिन ज्यादातर मिठाइयाँ घर पर ही बनाई जाती थीं। बेसन के लड्डू, बालूशाही, गुझिया, और मठरी जैसे पारंपरिक पकवान बनाए जाते थे, और इन्हें पड़ोसियों और रिश्तेदारों में बाँटा जाता था। उस समय मिठाइयों में प्रिजर्वेटिव्स नहीं होते थे, और स्वाद बिलकुल प्राकृतिक होता था।
4. सामूहिक पूजा और भजन-कीर्तन
अधिकतर गाँवों और छोटे कस्बों में सामूहिक पूजा का आयोजन किया जाता था। लोग मंदिरों में इकट्ठा होकर लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते थे और भजन-कीर्तन गाते थे। विशेष रूप से, कथा सुनाने की परंपरा थी जिसमें दिवाली के धार्मिक महत्व को समझाया जाता था।
5. फुलझड़ियों और पारंपरिक पटाखों का प्रयोग
उस समय पटाखों का सीमित उपयोग होता था और इनमें से ज्यादातर हाथ से बने होते थे। फुलझड़ियाँ, अनार, और कुछ हल्के पटाखे जलाए जाते थे। इन पटाखों में शोर-शराबे की बजाय ज्यादातर रंग-बिरंगी रोशनी होती थी। बच्चे और बड़े सभी मिलकर फुलझड़ियाँ जलाते थे।
6. पारंपरिक वेशभूषा
लोग अपने पारंपरिक कपड़े पहनते थे। महिलाएँ साड़ी और पुरुष धोती-कुर्ता पहनकर पूजा में शामिल होते थे। नए कपड़े पहनने की परंपरा भी थी, जो इस त्योहार के शुभता को दर्शाती थी।
7. साझा पर्व और मेल-मिलाप
गाँव और कस्बों में लोग दिवाली के दिन एक-दूसरे के घर जाते थे, मिठाइयाँ और उपहार बाँटते थे, और मिल-जुलकर खुशियाँ मनाते थे। इस दौरान सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को मजबूत किया जाता था। बड़े-बुजुर्ग आशीर्वाद देते और बच्चे इन्हें पाकर प्रसन्न होते।
8. धार्मिक अनुष्ठान और दान-पुण्य
दिवाली के अवसर पर गरीबों और जरूरतमंदों को दान देने की परंपरा थी। लोग कपड़े, अनाज और अन्य आवश्यक वस्तुएँ दान करते थे। इसे शुभ माना जाता था, और यह समाज में परस्पर सहायता का भाव भी बढ़ाता था।
9. गाय और अन्य पशुओं की पूजा
कई जगहों पर दिवाली के दिन गायों और अन्य पशुओं की पूजा भी की जाती थी। इसे खेती और घरेलू पशुओं के प्रति सम्मान दिखाने के रूप में देखा जाता था।
10. प्राकृतिक सजावट और साफ-सफाई
दिवाली से पहले घर की साफ-सफाई की जाती थी, और घर को आम के पत्तों, तुलसी के पौधों, और फूलों से सजाया जाता था। इसे शुभ माना जाता था क्योंकि ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-समृद्धि आती है।