हमारे यहां ये बात काफी मशहूर है कि असली भारत तो गांवों में ही बसता है. ये बात किसी हद तक सही भी है क्योंकि भारत की अधिकांश आबादी गांवों में ही निवास करती है. गांव का नाम आते ही आपकी गांव से जुड़ी यादें ताजा हो जाती होंगी, वो चूल्हे में बना खाना, कुएं से निकला पानी, हरे भरे खेत खलिहान आदि.

समय के साथ अब गांव भी बदल चुके हैं, कच्ची की जगह पक्की सड़के बन गई हैं, अब घर भी पक्के बनते जा रहे हैं, चूल्हे की जगह रसोई गैस का इस्तेमाल होने लगा है, अधिकांश गांवों तक बिजली पहुंच गई है. मगर आज हम एक ऐसे गांव के बारे बताने जा रहे हैं जिसके किसी भी घर में किचन नहीं है. यहां किसी भी घर में खाना नहीं बनता है. इसकी वजह भी बहुत ही दिलचस्प है.

गुजरात के मेहसाणा जिले का गांव है चंदनकी, यहां पक्की सड़कें है और साफ सफाई तो इतनी है कि आप देखते ही रह जाएंगे. लगभग 1300 लोगों की आबादी वाले इस गांव में 900 से अधिक युवा काम के सिलसिले में अमेरिका सहित कई देशों के अलावा भारत के ही अन्य इलाकों में जाकर बस गए हैं. युवाओं के बाहर जाने के बाद इस गांव में केवल बुजुर्ग ही बचे हैं.

ऐसे में किसी को अकेलापन ना महसूस हो इसलिए गांव के लोगों ने मिलकर एक योजना बनाई कि पूरे गांव का खाना एक साथ एक जगह पर बनाया जाए. यहां एक ही रसोई में सुबह की चाय से लेकर रात का खाना बनता है और सभी बुजुर्ग एकसाथ आराम से बैठकर खाना खाते हैं. अगर किसी के घर कोई मेहमान आ जाता है तो उस मेहमान का खाना भी उसी रसोई में बनाया जाता है.

सबसे दिलचस्प बात ये है कि इस गांव में पहले महिलाएं और बाद में पुरूष खाना खाते हैं. त्यौहार या किसी खास मौके पर जब इस गांव के युवा अपने घर वापस आते हैं तो वो लोग भी उसी रसोई में ही खाना खाते हैं. गांव के सरपंच और युवाओं ने मिलकर एक समिति का गठन किया है ताकि लोगों को पौष्टिक भोजन मिलता रहे.

इस गांव को निर्मल और तीर्थ गांव जैसे अवार्ड भी मिल चुके हैं. गांव की ग्राम पंचायत को समरस महिला ग्राम पंचायत का भी अवार्ड भी मिल चुका है. इस गांव की एकता और भाईचारे को देखने आज भी दूर-दूर से लोग यहां आते हैं.