दिवाली का जश्न पूरे देश में काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. ये सनातन धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार है. इस मौके पर देश के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरह की परंपराएं भी निभाई जाती है. कहीं पर फसलों की शादी कराई जाती है तो कहीं एक दूसरे पर पत्थर बरसाए जाते हैं. कहीं एक दूसरे पर पटाखे फेंके जाते हैं तो कहीं बछड़ों को अपने ऊपर दौड़ाया जाता है.

इसके अलावा और भी ना जानें कितनी परंपराएं निभाई जाती हैं. ऐसी ही एक अनोखी परंपरा राजस्थान के भीलवाड़ा में भी पिछले 60-70 सालों से मनाई जा रही है जहां पर दिवाली के दूसरे दिन गधे को दुल्हन की तरह सजाकर उसकी पूजा की जाती है. इस इलाके के लोग आज भी इस परंपरा को जिंदा किए हुए हैं.

यहां पर गधों की पूजा करने वाले लोग बताते हैं कि हमारा परिवार पिछले 60-70 सालों से ये परंपरा निभाता हुआ चला आ रहा है. पुराने दौर में जिस प्रकार किसान बैलों की पूजा करते थे उसी प्रकार हमारा समाज गधों की पूजा करता है.

उन्होंने कहा कि जब आवागमन और माल परिवहन का कोई साधन नहीं था तो गधों के माध्यम से ही वस्तुओं का परिवहन किया जाता था. तभी से ये परंपरा भी शुरू हुई थी. यहां पर कुम्हार समाज सालों से गधों के पूजन की परंपरा निभा रहा है.

उन्होंने बताया कि दिवाली के दूसरे दिन हमारा पूरा समाज एक जगह पर इकठ्ठा होता है, फिर गधों को दुल्हन की सजाकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है और बाद में उन्हें दौड़ाया जाता है.

गांव वालों का कहना है कि आज के दौर में गधों के कम पड़ जाने के बावजूद भी हम इस परंपरा को निभा रहे हैं. अगर आसपास गधे नहीं मिलते हैं तो हम दूर दराज के इलाकों से गधे मंगवाकर उनकी पूजा करते हैं.