दिवाली के मौके पर पूरा देश रौशनी से जगमग है. सबके घर आंगन में रंगोली सज चुकी है. भगवान राम के वनवास से अयोध्या लौटने पर जिस तरह घी के दिये जलाकर खुशियां मनाई गई थी उसी तर्ज पर आज भी देश दुनिया में दीपोत्सव मनाया जाता है.
भारत विविधताओं वाला देश है जहां अलग-अलग इलाकों में त्यौहार मनाने का तरीका भी अलग-अलग है. देशभर में कार्तिक अमावस्या पर भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है.
पूर्वी भारत की बात करें तो यहां के पश्चिम बंगाल, ओडिशा ओर असोम इलाकों में देवी काली की पूजा की जाती है. इसे श्यामा पूजा के नाम से जाना जाता है. दुर्गा पूजा के बाद ये पूर्वी भारत का सबसे बड़ा त्यौहार है.
यहां पर दिवाली की रात पूरे रीति रिवाज से मां काली की पूजा की जाती है. ओडिशा में लोग कौरिया काठी नाम की परंपरा को भी निभाते हैं, इसमें वो अपने पूर्वजों का सम्मान करते हैं. इसमें लोग जूट की टहनियों से आग पैदा कर अपने पूर्वजों को बुलाते हैं.
गुजरात के पंचमहल स्थित वेजलपुर गांव में एक अनोखी परंपरा है. यहां पर लोग दिवाली के दिन एक दूसरे पर पटाखे फेक कर उनको चिंगारियों से नहलाते हैं.
गुजरात के नर्मदा और बरूच इलाके में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग ऐसा करने को अच्छे स्वास्थ्य की निशानी मानते हैं. वो ये त्यौहार 15 दिनों तक मनाते हैं, इस दौरान हर्बल लकड़ियों को जलाकर उनकस धुआं लेते हैं. उनका मानना है कि ऐसा करने से स्वास्थ्य ठीक रहता है.
हिमाचल प्रदेश के धामी इलाके में दिवाली के मौके पर पत्थरबाजी का आयोजन होता है. इसे पत्थर के मेला के नाम से जानते हैं. हर साल दिवाली के मौके पर यहां पर लोग दो समूहों में एकजुट हो जाते हैं और एक दूसरे पर पत्थरों को फेकते हैं. पत्थर लगने से निकलने वाले खून से मंदिर में मां काली की प्रतिमा पर तिलक किया जाता है.
मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित बिडवाड़ गांव में दिवाली के अगले दिन लोग अपने बछड़ों को सजाते हैं और फिर जमीन पर लेटकर बछड़ों को अपने ऊपर से गुजरने देते हैं. इससे पहले लोग यहां पर 5 दिनों का उपवास रखते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और खुशहाली आती है.
छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में आदिवासी समुदाय के लोग दियारी के रूप में तीन दिन अनोखे रीति रिवाज को मनाते हैं. इसकी शुरूआत भगवान नारायण की मूर्ति के साथ खेतों में फसलों की समारोह पूर्वक शादी कराकर कराई जाती है.