राजा और महाराजा दोनों ही भारतीय साम्राज्य के शाही खिताब हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं इन दोनों में एक बड़ा अंतर होता है। साम्राज्य पर शासन करने वाला शासक तो राज कहलाता है। लेकिन महाराजा कहलाने के लिए कुछ शर्तों का होना ज़रूरी होता है। इस तरह इन दोनों में पद और शक्ति के आधार पर होते हैं। चलिए जानते हैं आख़िर किसे राजा का ख़िताब मिलता था और किसे महाराजा का ख़िताब दिया जाता था।
राजा
राजा एक राज्य या छोटे साम्राज्य का शासक होता है। यह खिताब किसी विशेष क्षेत्र, शहर, या भूमि के शासक को दिया जाता है, जो अपने क्षेत्र की रक्षा, प्रशासन, और कानून व्यवस्था का संचालन करता है। एक राजा के अधीन सीमित भूमि और प्रजा होती है।
महाराजा
महाराजा का अर्थ है महान राजा। यह खिताब उन शासकों को दिया जाता था जिनका राज्य बहुत बड़ा होता था और जिनकी राजनीतिक और आर्थिक शक्ति ज्यादा होती थी। एक महाराजा अक्सर कई राजाओं का प्रमुख होता था या उसका राज्य अधिक क्षेत्रों में विस्तारित होता था। महाराजाओं का प्रभाव और सम्मान भी राजाओं की तुलना में अधिक होता था।
भारत के महाराजा
भारत में सैकड़ों रियासतें थीं, लेकिन कुछ विशेष रियासतों के शासक ही महाराजा कहलाते थे। भारत के स्वतंत्रता से पहले, ब्रिटिश शासन के समय, लगभग 565 से अधिक रियासतें थीं, लेकिन इनमें से महाराजा का खिताब कुछ विशेष शासकों को ही मिला था। प्रमुख महाराजाओं में शामिल हैं, महाराजा रणजीत सिंह (सिख साम्राज्य, पंजाब), महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ (बड़ौदा, गुजरात), महाराजा माधवराव सिंधिया (ग्वालियर), महाराजा जयसिंह (अलवर), महाराजा हरी सिंह (जम्मू और कश्मीर)।