Dhanteras 2024:कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस के नाम से जाना जाता है. इस दिन मृत्यु के देवता यमराज को खुश करने के लिए लोग अपने घरों के बाहर दीपदान करते है ताकि घर में अकाल मृत्यु ना हो.
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को धन से ऊपर रखा गया है. कहावत “पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया”, धनतेरस का त्योहार भी कुछ ऐसा ही संदेश देता है कि सुखी जीवन के लिए स्वास्थ्य के बाद दूसरा नंबर धन और दौलत का है. इसलिए दीपावली के पहले दिन धनतेरस का विशेष महत्त्व है, जो संपन्नता और स्वास्थ्य दोनों का प्रतीक है.
धनतेरस का यमराज से संबंध
व्रत उत्सव चंद्रिका अध्याय 24 अनुसार,एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि मेरी आज्ञा के अनुसार जब तुम लोग प्राणियों के प्राण हरते हो तो क्या किसी समय तुम लोगों को किसी मनुष्य पर दया नहीं आती, यदि आती है तो कब और कहाँ इस पर दूतों ने उत्तर दिया. हंस नाम का एक बड़ा भारी राजा था.
वह किसी समय शिकार के लिये वन गया हुआ था. संयोगवश वह अपने साथियों से बिछुड़ गया और वन में इधर उधर भटकने लगा.
वन में घूमता घामता वह हेम नामक राजा के राज्य में चला गया. वहाँ हेम राजा ने उसका बड़ा आदर सत्कार किया. उस समय दैवयोग से हेम राजा के यहाँ एक पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ था। परन्तु छठि जन्म के छठे दिन का (उत्सव ) के दिन देवी ने प्रत्यक्ष होकर कहा कि राजन् ! तुम्हारा यह लड़का चार दिन के बाद मर जायेगा.
धनतेरस की पूजा विधि
- इस दिन यमराज की पूजा की जाती है जिससे वे प्रसन्न रहें तथा अकाल मृत्यु का निवारण करते रहें.
- धनतेरस के दिन हल से जुती हुई मिट्टी को दूध में भिगों कर सेमल वृक्ष की डाली में लगाये और उसको तीन बार अपने शरीर पर छिड़क कर कुंकुंम का टीका लगायें तथा पुनः कार्तिक स्नान करें.
- प्रदोष के समय मठ, मन्दिर, कुंआ, बावली, बाग, गोशाला, तथा गजशाला आदि स्थानों में तीन दिन तक लगातार दीपक जलाये.
- यदि तुला राशि का सूर्य हो तो चतुर्दशी और आमावस्या की शाम को एक जली लकड़ी लेकर तथा उसको घूमा कर पितरों को भी मार्ग दिखाने का विधान है.
- इस प्रकार धनतेरस के दिन दीपदान तथा यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय जाता है. इसलिए मित्रों कृपया कर के यम दीप प्रज्वलित करना ना भूलें.