देव उठानी एकादशी का पर्व आज पूरे देश में बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. सनातन धर्म के पांचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्री हरि योग निद्रा से जागते हैं.
दरअस्ल अषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं, इस कारण मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं. देव उठानी एकादशी के दिन जब भगवान निद्रा से जागते हैं तो फिर से मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.
देव जागरण या देव उत्थान होने की वजह से इसे देव उठानी एकादशी कहते हैं. ये साल की सबसे बड़ी एकादशी में से एक है. इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व होता है. माना जाता है कि इस दिन उपवास रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसी के अगले दिन माता तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह करवाया जाता है.
पूजा की विधि : इस दिन गन्ने का मंडप बनाएं और बीच में चौक बनाएं. चौक के मध्य में चाहें तो भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रख सकते हैं. चौक के साथ ही भगवान के चरण चिन्ह बनाए जाते हैं जो ढके होने चाहिए.
भगवान को गन्ना, सिंघाड़ा, फल और मिठाई अर्पित की जाती है. इसके बाद घी का दीपक जलाएं और इसे रात भर जलने दें. फिर भोर में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा कर उनके चरणों को स्पर्श कर उन्हें जगाएं. कीर्तन करें और वृत की कथा सुनें. फिर आप अपनी मनोकामना मांगे.
देवउठानी एकादशी का शुभ मुहूर्त : देवउठानी एकादशी पर रवि योग और सिद्धि योग का निर्माण होने जा रहा है. इस दिन रवि योग सुबह 6 बजकर 42 मिनट पर शुरू होकर सुबह 7 बजकर 52 मिनट तक रहेगा. उसके अलावा सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 7 बजकर 52 मिनट से 13 नवंबर सुबह 5 जबकर 40 मिनट तक रहेगा.
इन सभी योगों में भबवान श्रीहरि का पूजन किया जा सकता है. देवउठानी एकादशी 11 नवंबर शाम 6 बजकर 46 मिनट पर शुरू हो चुकी है और ये 12 नवंबर शाम 4 बजकर 04 मिनट तक रहेगी. इसका पारण 13 नवंबर सुबह 6 बजकर 42 मिनट से लेकर 8 बजकर 51 मिनट तक होगा.
इस दौरान अयोध्या के सरयू नदी में लाखों की संख्या में भक्त स्नान कर पुण्य कमा रहे हैं. इस दिन सरयू स्नान का बड़ा महत्व है. सरयू के अलावा गंगा नदी में भी लोग स्नान करते हैं.