आलू की अच्छी पैदावार के लिए ज़रूरी है कि उसकी बुवाई के समय कुछ सावधानियाँ बरती जाएं और ऐसे तरीक़े अपनाए जाएँ जो आलू में रोग की समस्या का कुछ हद तक पहले ही समाधान कर लिया जाए। इससे ना सिर्फ़ आलू की फसल रोगमुक्त होगी बल्कि बंपर पैदावार भी देखने को मिलेगी।
1. बीज का चयन
बोआई के लिए केवल स्वस्थ और प्रमाणित बीजों का ही चयन करें। अच्छे और स्वस्थ बीज रोगों के खतरे को कम कर सकते हैं।मध्यम आकार के बीजों का उपयोग करें, क्योंकि छोटे बीजों से अच्छी उपज नहीं मिलती और बड़े बीजों की लागत अधिक होती है। बीज उपचार बीजों को बोने से पहले रोगनाशक या कवकनाशक से उपचारित करना जरूरी होता है, ताकि वे किसी भी संभावित फफूंद या बीमारी से सुरक्षित रहें।
2. खेत की तैयारी
अच्छी जल निकासी वाली, हल्की दोमट या रेतीली मिट्टी को चुनें। पानी का जमाव आलू की फसल के लिए हानिकारक हो सकता है।मिट्टी का pH स्तर 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए। मिट्टी में यदि कोई समस्या हो, तो सुधार करने के लिए उचित उर्वरकों का उपयोग करें। बोआई से पहले खेत को अच्छी तरह से जुताई कर साफ कर लें, ताकि उसमें मौजूद खरपतवार और अन्य अनचाहे पौधे हट जाएँ।
3. बोआई का समय
आलू की बोआई का सही समय चुनें, ताकि फसल मौसम के अनुसार बेहतर ढंग से विकसित हो सके। भारत में आलू की बोआई आमतौर पर अक्टूबर से दिसंबर के बीच होती है। आलू की फसल के लिए ठंडा मौसम अनुकूल होता है। बहुत अधिक गर्मी या बारिश के मौसम में आलू की फसल पर रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
4. बोआई की तकनीक
बीजों के बीच उचित दूरी रखें (लगभग 20-30 सेमी), ताकि पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके और बीमारियों का खतरा कम हो। बीजों को सही गहराई (6-8 सेमी) पर बोएँ। बहुत गहरा या बहुत उथला बोने से फसल की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है।
5. खाद और उर्वरक का सही उपयोग
संतुलित उर्वरकों का उपयोग करें, ताकि मिट्टी में पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में हों। रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक खाद का भी उपयोग करें, ताकि मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहे और पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े।
6. सिंचाई का प्रबंधन
आलू की फसल को नियमित रूप से पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन पानी के जमाव से बचना चाहिए। पानी के अधिक जमाव से फफूंद और बैक्टीरियल बीमारियाँ बढ़ सकती हैं।
7. फसल चक्रीकरण
एक ही खेत में लगातार आलू की खेती से बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए फसल चक्रीकरण का पालन करें और खेत में हर साल अलग-अलग फसलें उगाएँ।