दिवाली की रात लक्ष्मी पूजन के समय कई मान्यताएं निभाई जाती हैं. हर समाज अपने अनुरूप माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं और अपनी परंपराओं को निभाते हैं. लेकिन सभी का उद्देश्य मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना ही होती हैं.

हालांकि ज्यादातर घरों में मां लक्ष्मी पूजन के बाद जुआ या ताश खेलते हैं उनके अनुसार ऐसे करना शुभ माना जाता हैं. जुआ खेलने का मुख्य उद्देश्य साल भर भाग्य की परीक्षा करना है. हालांकि जुआ खेलना एक तरह की सामाजिक बुराई है और सरकार ने इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा रही हैं.

क्योंकि जुआ खेलने से जीवन के सभी क्षेत्र में नुकसान ही होता है. लेकिन दिवाली की रात जुआ खेलने की परंपरा रही है.

महादेव और माता पार्वती ने खेला था चौसर :

दिवाली की रात जुआ खेलना इसलिए शुभ माना जाता है क्योंकि कार्तिक मास की अमावस्या को भगवान शिव और माता पार्वती ने चौसर खेला था. इस खेल में भगवान महादेव हार गए थे, तभी से दिवाली की रात जुआ खेलने की परंपरा शुरू हुई. हालांकि इस बारे में किसी भी ग्रंथ में कोई तथ्य नहीं है, यह सिर्फ धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है.

देवताओं को भी जुआ से हुआ है नुकसान :

कुछ लोग दिवाली की रात जुआ खेलना इसलिए अशुभ मानते हैं क्योंकि ऐसा करने से घर की सुख-शांति के साथ लक्ष्मी भी चली जाती है. महाभारत में युधिष्ठिर ने जुआ खेलकर यही ज्ञान दिया था, यह एक विनाशकारी नशा है. इससे हमेशा के लिए दूर ही रहने में भलाई है.

इस विनाशकारी खेल से ना केवल इंसानों को बल्कि देवताओं को भी भयंकर समस्याओं का सामना करना पड़ा है. बलराम ने भी जुआ खेला था, जिसमें वह हार गए और सभा में अपमानित होना पड़ा. जुआ की वजह से ही महाभारत का युद्ध हुआ था.

इसलिए नुकसान दायक है जुआ :

जुआ लोभ से जन्मी एक कुरीति है. उसके पोषण के लिए ही ऐसी असत्य और भ्रामक अवधारणाएं फैलाई जाती हैं, जिसकी ना ही कोई आध्यात्मिक बुनियाद है न तांत्रिक आधार है, न ही कोई सामाजिक सरोकार. इस जगत में हर शय परिवर्तनशील है.

यहां तक कि आपका रूप, रंग, हैसियत, पद, प्रतिष्ठा और धन भी. धन की स्वामिनी लक्ष्मी को भी चंचला कहा गया है, इसलिए धन को स्थायी समझने का खयाल एक भूल है. धन को द्यूत से अर्जित करने का खयाल योग्य, कर्मठ और उद्यमियों का नहीं, अकर्मण्य, अयोग्यों और आलसियों का है.